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नागपुर: नागपुर खंडपीठ ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि यदि नाबालिग लड़की से शादी भी हो गई हो और उसके साथ शारीरिक संबंध बने हों, तो भी POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) अधिनियम के तहत दर्ज मामला रद्द नहीं किया जा सकता। यह निर्णय नाबालिगों की सुरक्षा और बाल संरक्षण कानून की मजबूती के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
👉 मामले का पृष्ठभूमि
अकोला जिले के तेल्हारा पुलिस थाना क्षेत्र में 1 जुलाई 2025 को सूचना मिली कि एक नाबालिग लड़की ने अस्पताल में बच्चे को जन्म दिया। जांच से पता चला कि लड़की की शादी जून 2024 में 29 वर्षीय मिर्ज़ा असलम से हुई थी, जब वह नाबालिग थी। पुलिस ने असलम और उसके परिवार पर POCSO, IPC और बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत केस दर्ज किया।
👉 आरोपी की दलील
आरोपी ने हाईकोर्ट में FIR रद्द करने की मांग करते हुए कहा कि दोनों परिवारों की सहमति से विवाह हुआ था और अब लड़की वयस्क हो चुकी है। उसने अदालत में कहा कि उस पर कोई दबाव नहीं था और वह पति और बच्चे के साथ सुखी जीवन जी रही है।
👉 सरकार का पक्ष
सरकार ने दलील दी कि आरोपी को लड़की के नाबालिग होने की जानकारी थी। POCSO कानून के तहत नाबालिग की सहमति मान्य नहीं होती। अदालत ने माना कि वयस्क होने के नाते आरोपी को संयम बरतना चाहिए था।
👉 न्यायालय का फैसला
न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी-फळके और नंदेश एस. देशपांडे की खंडपीठ ने कहा कि शादी होने के बाद भी नाबालिग की सहमति कानूनी दृष्टि से मान्य नहीं है। इसलिए POCSO केस रद्द नहीं किया जा सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि 18 वर्ष की आयुसीमा समाज में किशोरवयीन शोषण और स्वास्थ्य जोखिमों से बचाव के लिए तय की गई है।
👉 महत्त्व
यह फैसला बताता है कि शादी नाबालिग के अधिकारों और सुरक्षा से ऊपर नहीं हो सकती। अदालत ने दोहराया कि नाबालिग की सुरक्षा सर्वोपरि है और ऐसे मामलों में कानून सख्ती से लागू होगा।






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