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नई दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा का कार्यकाल पिछले साल ही समाप्त हो गया था, लेकिन उन्हें कार्यकाल बढ़ा दिया गया है। फिलहाल वे अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री दोनों की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। पार्टी की परंपरा के मुताबिक एक व्यक्ति के पास केवल एक पद होना चाहिए, लेकिन नड्डा इस नियम का अपवाद बने हुए हैं। अब तक डेढ़ साल गुजरने के बावजूद नए अध्यक्ष का चुनाव नहीं हुआ है।
उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद दिल्ली में अध्यक्ष पद को लेकर चर्चा तेज़ हो गई है। एनडीए के उम्मीदवार सी. पी. राधाकृष्णन के उपराष्ट्रपति बनने के बाद ओबीसी समाज का प्रतिनिधित्व बढ़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ओबीसी समाज से हैं, जबकि वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू आदिवासी समाज से हैं। इससे पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद दलित समाज से थे। इन बदलते सामाजिक समीकरणों के आधार पर अब भाजपा अध्यक्ष पद के लिए ब्राह्मण समाज के उम्मीदवार को मौका मिल सकता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ब्राह्मण चेहरा प्राथमिकता देने की इच्छा जताई है। इस कड़ी में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस सबसे आगे हैं। अगर फड़नवीस दिल्ली में अध्यक्ष बनते हैं, तो राज्य की राजनीति में बड़ा बदलाव आ सकता है और भाजपा के राज्य नेतृत्व की रणनीति पर असर पड़ेगा।
अध्यक्ष पद के चुनाव में देरी के पीछे भाजपा और संघ के बीच मतभेद हैं। संघ अब फिर से गुजरात के चेहरे को अध्यक्ष पद देने के पक्ष में नहीं है। इसी कारण गुजरात के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल और केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला के नाम संघ ने खारिज कर दिए हैं। वहीं, संघ ने संजय जोशी का नाम सुझाया, लेकिन पार्टी नेतृत्व और उनके कार्यशैली के कारण विरोध का सामना करना पड़ा।










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